मध्य सागर और लाल सागर को जोड़ने का विचार बहुत पुराना रहा है। जिसे एक नहर द्वारा जोड़ा गया । कुछ लोगों का कहना है कि पहली नहर फराओ और सम्राटों के काल में लगभग 2000 वर्ष पहले बनाई गई थी। कई बार इस नहर के निर्माण की योजनाएं बनाई गई । लेकिन हर बार किसी न किसी कारण से यह बन नहीं पाई । इस विचार पर गंभीरता से तभी सोचा गया । जब पश्चिमी यूरोप भारत और सुदूर पूर्व के बीच व्यापार आरंभ हो गया । ऐसा अनुमान था की इस नहर के बनने भारत आने के लिए लगभग 9650 किलोमीटर का रास्ता कम हो जाएगा । ब्रिटेन के लोग इस कार्य के लिए बड़े इच्छुक थे ।
उनका व्यापार और राज्य क्षेत्र फैलता जा रहा था । इस कार्य के लिए पहल फ्रांस के लोगों ने की थी । स्वेज नहर परियोजना का जनक फर्डिनेंड द लेसेप्स को माना जाता है । उन्होंने व्यक्तिगत रूप से मिस्र की सरकार से या आग्रह किया था कि वह इस नहर के निर्माण का भार उन्हें सौंप दें । मिस्र की सरकार ने उन्हें सहमति प्रदान कर दी । उन्होंने इस परियोजना के लिए यूरोपीय देशों से जरूरत भर धन जुटाया । उन्हें नहर के लिए बहुत से लोगों ने नक्शे प्रदान की लेकिन आखरी में इटली के इंजीनियर लुइगी नेगरैली के नक्शे को मान्यता दी गई । 25 अप्रैल 1859 को नहर निर्माण का कार्य शुरू हुआ और 15 अगस्त 1869 में यह काम पूरा हो गया ।
इस काम के लिए महारानी विक्टोरिया ने फर्डिनेंड को विशेष सम्मान प्रदान किया । 1875 में स्वेज कैनाल कंपनी के अधिकतर शेयर ब्रिटेन के प्रधानमंत्री दिसरेली द्वारा खरीदा गया । इस प्रकार नहर पर ब्रिटेन का अधिकार बढ़ गया । और कंपनी को 99 वर्ष तक नहर के परिचालन का अधिकार सौंप दिया गया । सन 1956 में मिस्र की सरकार ने अचानक नहर का राष्ट्रीयकरण कर दिया । अब इस नहर की देखभाल उन देशों को करनी थी जिनसे होकर यह गुजरती है । इस निर्णय पर ब्रिटेन और फ्रांस के लोग काफी नाराज हुए लेकिन अंततः उन्हें इस समझौते को स्वीकार करना पड़ा । 10 वर्ष के अथक परिश्रम से 25000 मिस्त्री और 1000 यूरोपीय कारीगरों द्वारा निर्मित या नहर बड़ी महत्वपूर्ण साबित हुई । 17 नवंबर 1869 को इस नहर को खोल दिया गया । 20 जहाजों का बेड़ा पोर्ट सईद से चलकर स्वेज नहर तक आया ।
इस नहर की लंबाई लगभग 107 मील है । इसकी चौड़ाई पानी की सतह से ऊपर 235 फुट से लेकर 421 फुट तक है । तली में इसकी चौड़ाई 151 फुट और 337 फुट के बीच में है । नहर के पानी की गहराई 37 फुट से 42.5 फुट तक है । इसमें केवल उन जहाजों को जाने की आज्ञा होती है जिन्हें लगभग 35 फुट की गहराई की आवश्यकता होती है । इस नहर के कारण यूरोप से एशिया और पूर्वी अफ्रीका का सरल और सीधा मार्ग खुल गया । और इससे लगभग 6000 मील की दूरी कम हो गई। इससे अनेक देशों पूर्वी अफ्रीका ,ईरान ,अरब भारत, पाकिस्तान , सुदूर पूर्व एशिया के देशों ,ऑस्ट्रेलिया न्यूजीलैंड देशों के साथ व्यापार मैं बहुत सुविधा हो गई।
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