प्रथम विश्व युद्ध सन 1914 से 1918 तक लड़ा गया । इसमें संसार के लगभग सभी बड़े देशों ने भाग लिया। इस युद्ध में एक ओर इंग्लैंड , फ्रांस , रूस ,अमेरिका तथा जापान आदि देश थे , जिन्हें मित्र राष्ट्र कहा जाता है । दूसरी ओर केंद्रीय शक्तियां यानी जर्मनी , ऑस्ट्रिया , टर्की बुलगरिया तथा हंगरी देश थे । 4 वर्ष के युद्ध के बाद मित्र राष्ट्र की विजय हुई । यह युद्ध बड़े पैमाने पर आरंभ हुआ और जल ,थल ,वायु सभी जगहों पर लड़ा गया था । इस युद्ध में नई अस्त्रों शास्त्रों का पहली बार प्रयोग किया गया । टैंको और बम वर्सक विमानों का प्रयोग सबसे पहले इस युद्ध में हुआ था । इस युद्ध में जितनी हानि हुई उतनी पहले कभी नहीं हुई थी । इस युद्ध में जहां एक और हजारों नगर और गांव नष्ट हो गए । वहां दूसरी ओर लाखों मानव मारे गए । सन 1870– 71 में फ्रांस और जर्मनी के बीच भयंकर युद्ध हुआ था । इस युद्ध में जर्मनी की जीत हुई और फ्रांस के ऑलसे और लॉरेन नामक दो प्रांतों पर जर्मनी ने अधिकार कर लिया । इन दोनों प्रांतों में लोहे की खाने थी। जिन्हें फ्रांस किसी भी कीमत पर वह किस लेना चाहता था। उधर जर्मनी इन्हें किसी भी कीमत पर वापस नहीं देना चाहता था । इस स्थिति में दोनों देशों में युद्ध होना स्वभाविक हो गया । इस युद्ध में दूसरा कारण समाजवादी प्रतिस्पर्धा थे। इंग्लैंड फ्रांस जर्मनी , रूस ,ऑस्ट्रिया और इटली संसार के विभिन्न भागों मैं एक दूसरे से बढ़कर नए उपनिवेश बनाने की इच्छा रखते थे । इनमें से कुछ देश तो दूसरे देशों के उपनिवेश भी छीनने पर उतारू थे ।19वीं शताब्दी में टर्की की शक्ति कम हो जाने पर रूस , ऑस्ट्रिया और बुल्गारिया जैसे देश बालकान क्षेत्र में अपना अधिकार जमाना चाहते थे । 19वीं सदी में जर्मनी ऑस्ट्रिया और इटली एक गुट में शामिल हो गए । और इंग्लैंड , फ्रांस और अमेरिका दूसरे कोर्ट में गुट में । देखते ही देखते इन दोनों शक्तिशाली
अमेरिका ने उत्तर पश्चिम एरीजोना तथा दक्षिण पश्चिम उटा की सीमाओं के आर पार विस्तृत सपाट मैदाने हैं । यहां सैकड़ों ऊंचे ऊंचे रेतीले पत्थरों के स्तंभ टीले और बूटे बने हैं। प्रकृति द्वारा निर्मित विभिन्न आकार प्रकार की रचनाएं इस घाटी की सुंदरता में चार चांद लगा देती हैं । संध्या के समय जब सूरज अस्त होने को होता है । तो इन संरचनाओं की परछाई मिलो लंबी दिखाई देती हैं। इन रचनाओं का पत्थर लाल रंग का है । इसका निर्माण रेतीले पत्थरों की विशाल चट्टानों के वायु तथा वर्षा द्वारा अपरदन से हुआ है । इसमें तीन रचनाएं आपस में ऐसे मिलती-जुलती हैं , और इस ढंग से खड़ी हैं किन्हीं तीन बहने कहा जाता है । इनमें से एक की बनावट टोप जैसी है और ऊंचाई 243 मीटर है । इसकी आकृतियां किसी प्राकृतिक स्तंभ जैसी हैं । चट्टानों की कुछ परते अधिक सख्त होती हैं इसलिए वायु और वर्षा का सख्त पदों पर कम प्रभाव होता है । जबकि मुलायम परतें पानी में घोलकर बह जाती हैं । यह तथ्य यहां के एक समय में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है । इस स्तंभ के सबसे ऊपर की सतह काफी सख्त है। लेकिन मुलायम होने के कारण नीचे की परतों पर वर्षा और वायु का प्रभाव पड़ा है। एरीजोना की यह रचना है काफी पास पास दिखती हैं जबकि इतने पास है नहीं । कुछ रचनाएं हाथी के पैर जैसे दिखते हैं। इस क्षेत्र में 1 वर्ष में लगभग 8 इंच वर्षा होती है। लेकिन बर्फ यहां काफी मात्रा में गिरती है । एक अनुमान के अनुसार इन रचनाओं का निर्माण लगभग 25000 लाख वर्ष पहले अपरदन के कारण आरंभ हुआ । आज भी इनका निरंतर अपरदन हो रहा है । लेकिन इतनी धीमी गति से कि मनुष्य को अपने जीवन काल में भी कोई परिवर्तन दिखाई नहीं देता। इन रचनाओं में से कुछ समाधि स्तंभों की तरह दिखती हैं । इनमें से कुछ वास्तव में समाधिया भी हैं । एक चट्टान के नीचे एक नवाहो भारतीय अपने घोड़े के साथ दफनाया गया था यहां बसने वा
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