Airtical Of Ikebana - इकेबाना का लेख

प्रत्येक धर्म अपने मानव समाज से संबंधित कला तथा संस्कृति के भिन्न भिन्न क्षेत्रों पर प्रभाव डालता है। मानव सभ्यता के शुरूवाती दौर मे कलाकार चित्रकार आदि धार्मिक विषयों पर कार्य करते थे । छठी तथा सातवें शताब्दी में जापानी कला भगवान बुद्ध द्वारा दिए गए उपदेशों से बहुत प्रभावित हुए । इस काल में बौद्ध धर्म भारत से चीन होता हुआ जापान पहुंचा । 

जिस समय जापान में बौद्ध मंदिर में फूलों को भगवान  बुद्ध की मूर्ति पर चढ़ाया जाता है उसे जिस कला पूर्ण रीत से सजाया जाता है उससे इकेबाना कहते हैं । जब चीन से बौद्ध भिक्षु जापान आए और उन्होंने इस कला को सबसे पहले शुरू किया और इससे एक धार्मिक कृत्य में रूपांतरित कर दिया । यह कहा जाता है कि सातवीं शताब्दी में चीन स्थित जापान के राजदूत औनो इमोको ने फूल सज्जा के नियमों को निश्चित किया । और जापान में इसके पहले स्कूल इकेनोबो की स्थापना की । 

इस पुष्प सज्जा के नियमों का आधार फूलों के आकर्षक सौंदर्य को ध्यान में रखते हुए उनकी सजावट में सादगी में  सकारात्मक भाव लाना था । इकेबाना पुष्प सज्जा की शैली के अनेक कलात्मक रूप हैं । इनमें शास्त्रीय पुष्प कला के लिए  रिका और सोका प्रसिद्ध है ।  यह पारंपरिक कलाएं 15वीं और 16वीं शताब्दी में क्योटो  के रोकाक  जी में धार्मिक अनुष्ठान के एक आवश्यक अंग के रूप में स्वीकृत कर ली गई । इस काल में जापान समाज के कुलीन वर्ग द्वारा इकेबाना को अपनी संस्कृति के एक अंग के रूप में अपना लिया गया । और यह एक सर्वप्रिय कला के रूप में स्थापित हो गया । धीरे धीरे यह पुष्कला के  उद्योग के रूप में बदल गया ।

 बीसवीं शताब्दी की शुरुआत के बाद फूलों को कलात्मक रूप से सजाने की कला को जापानी महिलाओं ने अपने हाथों में ले लिया । फूलों को सजाने की या कला जापान तथा विश्व के अन्य देशों में बहुत लोकप्रिय बन गई ।

0

0 comments:

Post a Comment