हरगोविंद खुराना का जन्म 9 फरवरी 1922 को हुआ था । भारत में जन्मे किंतु अमेरिका में जाकर बस गए । हरगोविंद खुराना एक रसायन शास्त्री थे । इन्हें 1968 में शरीर विज्ञान के क्षेत्र में मार्शल डब्लू नीरेनबर्ग और राबर्ट डब्लू हाली के साथ उस अनुसंधान के लिए नोबेल पुरस्कार मिला । जिससे यह पता लगाने में मदद मिली की कोशिका के अनुवांशिक कूट को ले जाने वाले न्यूक्लिक अम्ल न्यूक्लोटाइडिस कैसे कोशिका में प्रोटीन संश्लेषण को नियंत्रित करते हैं । इनका जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था ।
उन्होंने लाहौर में पंजाब विश्वविद्यालय और लिवरपूल यूनिवर्सिटी इंग्लैंड में शिक्षा ग्रहण की । इन्होंने सर अलेक्जेंडर टॉड के कैंब्रिज यूनिवर्सिटी 1951 में न्यूक्लिक एसिड पर अनुसंधान शुरू किया । यह स्वीटजरलैंड में स्विस फेडरल इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलॉजी और ब्रिटिश कोलंबिया , कनाडा ( 1952– 1959 ) एवं विस्कओउंसिल अमेरिका में फैलो और प्राध्यापक पदों पर रहे । 1971 में उन्होंने मैसेच्यूसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के संकाय में कार्यभार संभाला । 1960 के दशक में खुराना ने इस खोज की पुष्टि की कि डी.एन.ए अणुके घुमावदार सोपान पर चार विभिन्न प्रकार के न्यूक्लियोटाइड्स के विन्यास का तरीका नई कोशिका की रासायनिक संरचना और कार्य को निर्धारित करता है । डी.एन.ए. के एक तंतु पर इच्छित अमीनो अम्ल उत्पादित करने के लिए न्यूक्लियोटाइड्स के 64 संभावित संयोजन पाए गए हैं । जो प्रोटीन के निर्माण के खंड हैं ।
खुराना ने इस बारे में आगे जानकारी दी कि न्यूक्लियोटाइड्स का कौन सा कार्मिक संयोजन किस विशेष अमीनो अम्ल को बनाता है । उन्होंने इस बात की भी पुष्टि की कि न्यूक्लियोटाइड्स कूट कोशिका को हमेशा 3 के समूह में प्रेषित किया जाता है । जिन्हें प्रकूट या कोडॉन कहा जाता है । उन्होंने यह भी पता लगाया कि कुछ प्रकूत कोशिका को प्रोटीन का निर्माण शुरू या बंद करने के लिए प्रेरित करते हैं । खुराना ने 1970 में अनुवांशिकी में एक और योगदान दिया , जब वह और उनका अनुसंधान दल एक खमीर जीन की पहली कित्रिम प्रतिलिपि संश्लेषित करने में सफल रहे । डॉक्टर खुराना अंतिम समय में जीव विज्ञान एवं रसायन शास्त्र के प्राध्यापक और लिवरपूल यूनिवर्सिटी में कार्यरत रहे । हरगोविंद खुराना का मृत्यु 9 नवंबर 2011 को हुआ।
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