वर्तमान असम के बारंग बाड़ी गांव में कृष्ण कांत बरुआ और कर्णेश्वरी के घर कनक का जन्म हुआ था । कनकलता बरूआ भारत की स्वतंत्रता सेनानी थी । जिनको अंग्रेजों ने सन 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के समय गोली मार दी थी । इस वीर बाला का जन्म 22 दिसंबर 1924 को गोहपुर में हुआ था ।
इन्हें पूर्वोत्तर भारत के लक्ष्मीबाई भी कहते हैं । भारत छोड़ो आंदोलन का दौर था 20 सितंबर 1942 के दिन तेजपुर से 82 मील दूर गोहपुर थाने पर तिरंगा लहराया जाना था । आंदोलनकारियों का जत्था भारत माता की जय बोलता थाने की ओर जा रहा था । तिरंगा थामे 18 वर्षीय नवयुवती जुलूस का नेतृत्व कर रही थी ।
इसी युवती का नाम था कनकलाता बरूआ । थाना प्रभारी पी .एम. सोम जुलूस को रोकने के लिए सामने खड़ा था । कनकलता ने कहा हमारा रास्ता मत रोकिए । हम आपसे संघर्ष करने नहीं आए हैं । हम तो थाने पर तिरंगा लहराने स्वतंत्रता की ज्योती जलाने आए हैं । थाना प्रभारी ने कहा 1 इंच भी आगे बढ़े तो गोलियों से उड़ा दिए जाओगे । कनकलता शेरनी की तरह गरज उठी ।
हम युवतियों को अबला समझने की भूल मत कीजिए । आत्मा अमर है , नाशवान है तो मात्र शरीर । अतः हम किसी से क्यों डरें तुम गोलियां चला सकते हो पर हमें कर्तव्य विमुख नहीं कर सकते । करेंगे या मरेंगे । स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है ।नारे गूंजती हुई थाने की ओर चल पड़ी शेरनी कनक , पीछे से जुलूस ।
पुलिस ने जुलूस पर गोलियों की बौछार कर दी । पहले गोली कनकलता ने अपने सीने पर झेली । दूसरी गोली मुकुंद काकोटी को लगी जो तत्काल ही शहीद हो गए । कनक गिर पड़ी किंतु तिरंगा झुकने नहीं दिया । गोली की परवाह किए बिना आगे बढ़ तिरंगा फहराने की होड़ लग गई । अंत में रामपति राजखोवा ने थाने पर झंडा फहराया ।
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