चंद्रमा को नंगी आंखों से देखने पर उसकी सतह पर हमें कुछ काले धब्बे दिखाई देते हैं । प्राचीन मानव का विचार था कि चंद्रमा की सतह के काले धब्बे पानी से भरे सागर हैं । जैसा कि हमारी धरती के सागर हैं । गैलीलियो ने चंद्रमा के इन दावों को सन 1609 में अपने बनाए हुए दूरदर्शी से देखा । उन्हें यह काले धब्बे सपाट सागरों के रूप में दिखाई दिए ।
इसलिए उन्हें चंद्रमा के सागरों का नाम दे दिया गया । वास्तव में ये सूखे सपाट मैदान है जहां पानी का निशान भी नहीं है । लेकिन पुरानी धारणा के अनुसार इन आज भी हम सागर कहते हैं । इन सागरों को मेरिया कहते हैं । गैलीलियो ने चंद्रमा के कुछ चमकीले क्षेत्रों का भी अध्ययन किया था । यह चमकीले क्षेत्र वास्तव में ऊंचे पहाड़ थे । चंद्रमा के कुछ पहाड़ तो लगभग 1000 मीटर तक ऊंचे हैं । आश्चर्य की बात तो यह है कि गहरे विशाल मैदान चंद्रमा की हमारी तरफ वाली सतह पर ही हैं । दूसरी ओर की सतह पर इनकी संख्या बहुत ही कम है । दूसरी सतह लगभग पर्वत मालाओं से ढकी है । चंद्रमा के सपाट मेंदानों को दो वर्गों में बांटा जा सकता है ।
पहले वर्ग में सागर आते हैं जो लगभग वृत्ताकार हैं । और दूसरे प्रकार के मैदान अनियमित आकार के हैं । वृत्ताकार सागर समानता पर्वतों से घिरे हैं मेयर क्यूरियम चंद्रमा की हमारी ओर की सतह पर ऐसे ही सागर है। मेयर मोस्कोविंस चंद्रमा की दूसरी ओर की सतह पर एक ऐसा ही सागर है । अनियमित सागर में मेयर टेंकिवलिटाइटिस और ओसिनस प्रोस्लर्म आते हैं । जिनके किनारों पर विशेष पर्वतमालाएं नहीं है । इनका निर्माण संभवता तीव्र गति से गिरते हुए विशाल उल्का पिंडो के चंद्रमा की सतह से टकराने के कारण हुआ होगा । चंद्रमा की सतह फट गई होगी या ज्वालामुखी फूट पड़े होंगे जिनके कारण चंद्रमा के आंतरिक भाग से विशाल लावा बहकर सतह पर जमा हो गया होगा ।
चंद्रमा की सतह की चट्टानों की संरचना बासल्ट से मिलती जुलती है । अपोलो यानों के अंतरिक्ष यात्रियों द्वारा इन सागरों की चट्टानों के नमूने एकत्रित किए गए । और उनका अध्ययन किया गया । इन अध्ययन से ऐसा लगता है कि इन सागरों के बेसिन लगभग साडे 350 करोड़ वर्ष पहले आरंभ हुए थे। चंद्रमा के पर्वतीय भागों की उत्पत्ति सागरों से पहले हुई थी । अधिकतर पर्वत मालाएं इन सागरों को घेरे हुए हैं । मार्च 1998 में अमेरिका के वैज्ञानिक ने अंतरिक्षयान 7 लूनर प्रोस्पेक्टर की सहायता से या पता लगाया कि चंद्रमा की उत्तरी सतह और दक्षिणी ध्रुव पर बर्फ है । जिससे पानी बनाया जा सकता है इस खोज से यह आशा होने लगी है कि भविष्य में शीघ्र ही चांद पर मानव युक्त वैज्ञानिक प्रयोगशाला बन जाएंगे ।
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