Biography of Maharani Laxmi Bai In Hindi - महारानी लक्ष्मी बाई की जीवनी

सन 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में  अंतिम  आहुति देने वाली इस महान  वीरांगना की उस समय आयु मात्र 22 वर्ष थी । आजादी की लड़ाई लड़ने वाले सभी शहीदों की प्रमुख प्रेरणा स्रोत रही हैं झांसी की रानी –महारानी लक्ष्मी बाई । इन के बचपन का नाम मनु था । वह कोई राजकुमारी नहीं थी । लेकिन पेशवाओ के विश्वासपात्र एक सरदार मोरोपंत की पुत्री थी । 

उनकी माता का नाम भागीरथी बाई था ।  मनु का जन्म 19 नवंबर 1835 को दीपावली से 1 दिन पहले वाराणसी में हुआ था । तब तक भारत पर अंग्रेजों का शिकंजा पूरी तरह से कस चुका था । वह अत्यंत चंचल और सुंदर थी और इसी कारण पेशवा बाजीराव उन्हें छबीली कहते थे । लक्ष्मीबाई शादी के समय ससुराल पक्ष द्वारा दिया गया नाम था । मनु की माता का देहांत उसी समय हो गया जब वह मात्र 4 वर्ष की थी । उनके पिता मोरोपंत ने दूसरी शादी नहीं की । यद्यपि नाना साहब और राव साहब उम्र में मनु से बड़े थे । लेकिन उनके साथ ही मनु भी घुड़सवारी , तलवारबाजी और युद्ध के अभ्यास जैसे खतरनाक हुनर सिखती रहती थी ।16 वर्ष की उम्र में मनु की शादी झांसी के नरेश गंगाधर राव से हो गई थी । महाराज के निधन के बाद रानी लक्ष्मीबाई ने झांसी की बागडोर खुद संभाल ली । 

मगर लॉर्ड डलहौजी झांसी को हड़पने का कुचक्र रचने लगा । इसका परिणाम अट्ठारह सौ सत्तावन के युद्ध में सामने आया । सेनापति ह्यूरोज ने विशाल सेना के साथ झांसी पर आक्रमण किया । रानी ने 12 दिन तक अंग्रेजों को झांसी में घुसने से रोक दिया । अपनी जनता की रक्षा के लिए रानी अपने दत्तक पुत्र को पीट पर बांधकर किले के बाहर तलवार चलाते हुए निकल गई । और ग्वालियर तक पहुंच गई । वहां रानी अंग्रेजों से युद्ध करते हुए गंगादास साधु की कुटिया में घायल अवस्था में पहुंची ही थी । कि वह युद्ध करते करते रणभूमि में वीरगति को प्राप्त हो गई । रानी के सैनिकों को इतना समय नहीं था कि उनका अंतिम संस्कार करते । तो बाबा गंगा दास ने अपनी कुटिया में शव रखकर कुटी में ही आग लगा दी । उनके साथी लड़ते रहे । अंग्रेज उनके शरीर को स्पर्श भी नहीं कर सके ।

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