भारतीय इतिहास में स्त्री शिक्षा तथा समाज से वंचित वर्ग की शिक्षा के क्षेत्र में फुले दंपति का योगदान बहुत महत्वपूर्ण है। वह इतिहास में अमर हो गई । दोनों का जन्म महाराष्ट्र के सतारा जिले में हुआ । ज्योतिबा का जन्म 11 अप्रैल 1827 में कटगुड में हुआ । 9 महीने की आयु में उनकी माताजी का निधन हो गया । तथा उनके पिता उन्हें लेकर पुणे चले गए । जहां उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की । सावित्रीबाई का जन्म नायगांव में 3 जनवरी 1831 को हुआ । सन 1840 में 9 वर्ष की आयु में सावित्री की शादी ज्योतिबा से कर दी गई । स्त्री शिक्षा के बारे में खुले विचार रखने वाले ज्योतिबा ने शादी के उपरांत सावित्री को पढ़ाना शुरू कर दिया ।
1848 में ज्योतिबा ने तत्कालीन समाज में अछूत कहे जाने वाले बच्चों के लिए तथा बालिकाओं के लिए पूरे शहर में अनेक पाठशाला खोल दिए । उस समय समाज में स्त्रियों का शिक्षा ग्रहण करना वर्जित माना जाता था । इसलिए उन्हें बहुत ज्यादा विरोध का सामना करना पड़ा । बालिकाओं को पढ़ाने के लिए महिला अध्यापिका की जरूरत थी । इसलिए उन्होंने सावित्री को अध्यापन कार्य के लिए तैयार कर लिया । बालिकाओं के लिए पहली पाठशाला पुणे के बुधवार पेठ भिड़ेवाड़ा में खोली गई । सावित्रीबाई पढ़ाने जाती थी तब विरोधी लोग उन्हें गालियां देते कीचड़ और गोबर उन पर फेकते थे । परंतु फिर भी सावत्री ने अपना काम नहीं छोड़ा । वह बहुत प्रतिभाशाली थी । उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से बालिकाओं की शिक्षा का महत्व समाज के सामने प्रस्तुत किया ।
"काव्य फुले" तथा " बावनकाशी सुबोध रत्नाकर" नाम से उनकी कविताओं के दो संग्रह प्रकाशित हुए हैं । ज्योतिबा किसान परिवार से थे तथा उन्हें किसानों की समस्याओं की चिंता अधिक थी । उन्होंने मराठी में " शेतकरया आसूद " ( किसान का कोड़ा ) नाम से पुस्तक लिखी । जिसमें उन्होंने किसानों की स्थिति का वर्णन किया है । ज्योतिबा ने अपना सारा जीवन स्त्री तथा दलितों पीड़ितों की सेवा में लगा दिया । वह बाल विवाह के विरुद्ध थे । सन 1873 में उन्होंने सामाजिक न्याय हेतु "सत्यशोधक समाज" की स्थापना की ।
सन 1888 में मुंबई में एक विराट सभा में समाज ने उन्हें महात्मा की उपाधि प्रदान किया । महात्मा ज्योतिराव फुले अपने स्पष्ट विचारों के कारण जाने जाते हैं । किसानों दलितों तथा महिलाओं के सबलीकरण के प्रणेता ज्योतिबा का निधन सन 1890 की 28 नवंबर को हुआ । फुले दंपत्ति अपने अतुल कार्य द्वारा भारतीय शिक्षा के क्षेत्र में अपनी स्पष्ट व अमित छाप छोड़ दी है । सन 1897 में पुणे में प्लेग की भयंकर बीमारी फैली थी । सावित्रीबाई अपने दत्तक पुत्र यशवंत को साथ लिए पीड़ितों की सेवा करने में जुट गई । इस दौरान उन्हें भी प्लेग ने पकड़ लिया । तथा 10 मार्च 1897 को उनकी मृत्यु हो गई । आधुनिक भारत की पहली महिला अध्यापिका जिन्हें समाज क्रांतीज्योती की उपाधि से जानता है ।
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