Article Of Greenhouse Effect In Hindi - ग्रीनहाउस प्रभाव का लेख

ग्रीनहाउस को हिंदी में पौधा घर कहते हैं । इन पौधा घरों में छोटे-छोटे पौधे रखे जाते हैं। और वहां का तापक्रम नियंत्रित रखा जाता है।बाहर के तापक्रम या वर्षा का इन पौधों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता क्योंकि पौधा घर शीशे का बना हुआ होता है।


लेकिन जब हम पृथ्वी के बारे में ग्रीन हाउस प्रभाव की बात करते हैं तो उसका मतलब यह होता है कि मनुष्य अपने कल कारखानों और अन्य वैज्ञानिक कारणों से ऐसे हालात पैदा कर रहा है। जिससे पृथ्वी तथा उसके निकट के वातावरण में गर्मी अंतरिक्ष में ऊपर नहीं जा पाती और वह वायुमंडल की ऊपरी सतह द्वारा शोख ली जाती है तथा परावर्तित होकर फिर धरती के वातावरण में आ जाती है।

इस विषय को समझने के लिए यह जानना जरूरी है कि तेजी से बढ़ते हुए औद्योगिकरण और टेक्नोलॉजी के आधुनिकरण में जो खेतों से लेकर कल कारखानों और अंतरिक्ष की खोज से संबंधित कार्यों में हो रहा है। विशेष रुप से मिट्टी के तेल , पेट्रोल , डीजल , गैस आदि का उपयोग होता है । इनसे पैदा होने वाला ताप , धूआ और विभिन्न गैस पूरी धरती के औसत तापमान में वृद्धि कर रही है। इसे ही ग्लोबल वार्मिंग कहते हैं। यह वातावरण में रहने वाली ग्रीन हाउस गैसों की सघनता के बढ़ जाने से होता है।

ग्रीन हाउस गैसें मुख्य रूप से  कार्बनडाइऑक्साइड गैस है। यह गैस कोयला , पेट्रोल और प्राकृतिक गैस के जलने से बनती है। ग्रीनहाउस प्रभाव उत्पन्न करने वाली गैसों में मेथेन, क्लोरोफ्लोरोकार्बंस , नाइट्रस ऑक्साइड, इन गैसों का स्रोत रेफ्रिजरेशन से निकलने वाली वास्प , एयर कंडीशनिंग प्लांट , औद्योगिक कल कारखानों से निकलने वाला धुआं , भभक पशुओं , कीड़ा मकोड़ा विभिन्न पेड़ पौधों के मरने सड़ने के कारण होने वाला किडवन से होता है।

वैज्ञानिक को विश्वास है कि आज से 50 वर्ष बाद धरती का तापक्रम उल्लेखनीय रूप से बढ़ जाएगा। अब से सन 2025 तक यह 1 सेल्सियस तक और उसके बाद सन 2100 तक यह 3 सेल्सियस तक बढ़ जाएगा। इससे पृथ्वी की परिस्थितियों में कई विशेष परिवर्तन शुरू होने लगेंगे । मौसम का सामान क्रम बदलने लगेगा । पृथ्वी के उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव पर जमी बर्फ पिघलने लगेगी ।  इसके फलस्वरूप समुद्र का जल स्तर ऊंचा उठ जाएगा। जिसके अनेक स्थल भाग समुद्र के पानी में डूब जाएंगे । पूरी पृथ्वी के समुद्र के अनेक तटों में पानी भर जाएगा। जिससे बाढ़ आ जाएगी मानव सभ्यता का विशाल भाग सागर के नीचे समा जाएगा ।

पेरिस में स्थित संस्था अंतर्राष्ट्रीय काउंसिल आफ साइंटिफिक यूनियन के अंतर्गत विश्व के सभी देशों के वैज्ञानिक भविष्य में आने वाले इस भयानक संकट का सामना करने के लिए खोज कार्य करने में व्यस्त हैं।
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